व्रत का महत्व: वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है। “वरूथिनी” का अर्थ है — रक्षा करने वाली। यह एकादशी मनुष्य को पापों से मुक्त करके उसकी रक्षा करती है और उसे मोक्ष प्रदान करती है।
व्रत कथा:
प्राचीन समय की बात है। पृथ्वी पर एक परम धर्मात्मा और पराक्रमी राजा थे, जिनका नाम था माण्डाता। राजा माण्डाता सत्यनिष्ठ, दानवीर और तपस्वी थे। उन्होंने जीवन के उत्तरार्ध में राजपाट छोड़कर वन में निवास करना शुरू किया और नर्मदा नदी के तट पर कठोर तपस्या करने लगे।
राजा की तपस्या इतनी गहन थी कि देवताओं तक को आश्चर्य होने लगा। एक दिन, जब राजा ध्यान में लीन थे, तभी वन से एक जंगली भालू आया और राजा के पैर को चबाने लगा। राजा ने शरीर का कोई प्रतिकार नहीं किया और एकाग्र भाव से भगवान विष्णु का स्मरण करते रहे।
भालू लगातार राजा का पैर खाता रहा, लेकिन राजा विचलित नहीं हुए। अंततः भगवान विष्णु ने भक्त की पुकार सुनी और सुदर्शन चक्र से भालू का वध कर दिया।
राजा ने भगवान से पूछा, “हे प्रभो! मैंने कौन सा पाप किया था, जिससे मुझे यह कष्ट सहना पड़ा?”
भगवान विष्णु ने कहा, “राजन्! पूर्व जन्म में तुमने कुछ ऐसे कर्म किए थे जिनके फलस्वरूप यह भोग तुम्हें सहना पड़ा। परंतु तुमने जिस प्रकार भक्ति की है, वह अत्यंत अद्भुत है। यदि तुम वरूथिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करोगे, तो तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे और तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।”
भगवान ने राजा को व्रत की विधि बताई और अंतर्धान हो गए। राजा ने श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया और अंततः उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
📿 व्रत के नियम और लाभ:
- इस दिन प्रातः स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
- दिनभर उपवास करें, फलाहार या जल पर रहें (या निर्जल उपवास करें यदि संभव हो)।
- भगवान विष्णु की पूजा करें, श्रीमद्भगवद्गीता का पाठ करें।
- रात्रि जागरण और भजन-कीर्तन करें।
- अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण या ज़रूरतमंद को दान देकर व्रत का पारण करें।
🔔 लाभ:
- पापों से मुक्ति मिलती है।
- जीवन में शुभता, विवाह, संतान, और समृद्धि आती है।
- अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्री हरि विष्णु जी की आरती (Aarti of Lord Vishnu)
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
गले में वैजयंती माला,
बजावे मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुंडल झलकत,
नंद के आनंद नंदन॥ आरती…
गगन सम अंग कांति,
चंद्र सा मुख सुन्दर शांति।
पीतांबर शोभा साजे,
नंद के आनंद नंदन॥ आरती…
कटि में कांचन करधारी,
फिरें कुंज गली बनवारी।
रास रचावत मधुबन में,
गोपियाँ संग बिहारी॥ आरती…
जय जय श्री वृंदावन चंद,
जय यमुना जल तरंग।
मन बसो मुरलीधर प्यारे,
करो कृपा भव सिंधु उबारे॥ आरती…
आरती कुंज बिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
FAQs – Varuthini Ekadashi Vrat (वरूथिनी एकादशी व्रत से जुड़े प्रश्न)
उत्तर: वरूथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। यह आमतौर पर अप्रैल-मई के बीच आती है।
उत्तर: यह एकादशी पापों से रक्षा करने वाली, पुण्यदायिनी और मोक्ष दिलाने वाली मानी जाती है। इसका व्रत रखने से पूर्व जन्म के पाप भी नष्ट हो जाते हैं और जीवन में शुभता आती है।
उत्तर: प्रातः स्नान करके व्रत का संकल्प लें। दिनभर व्रत रखें (फलाहार या निर्जल)। भगवान विष्णु का पूजन करें, भजन-कीर्तन करें, और रात्रि में जागरण करें। द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करवाकर व्रत का पारण करें।
उत्तर: यह कथा धर्मात्मा राजा माण्डाता से जुड़ी है, जिन्होंने तपस्या के दौरान भालू के हमले को सहते हुए भगवान विष्णु की आराधना की और मोक्ष प्राप्त किया।
उत्तर: हां, इस दिन अन्न, चावल, तामसिक भोजन, लहसुन-प्याज आदि का सेवन वर्जित होता है। व्रती को फलाहार या जल पर रहकर ही व्रत करना चाहिए।
उत्तर: यह व्रत भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित होता है। विशेष रूप से उनके वराह अवतार की पूजा का महत्व है।
उत्तर: यह व्रत कोई भी कर सकता है — पुरुष, महिला, ब्रह्मचारी या गृहस्थ। व्रत श्रद्धा और नियमों के अनुसार करना चाहिए।
वरूथिनी एकादशी व्रत न केवल आध्यात्मिक शुद्धि का माध्यम है, बल्कि यह जीवन में शुभता, समृद्धि और मोक्ष प्राप्ति का भी मार्ग प्रशस्त करता है। इस दिन श्रद्धा और नियमों के साथ उपवास, पूजा और भगवान विष्णु की आराधना करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। व्रत कथा, पूजन विधि और आरती का सच्चे मन से पालन करने वाला व्यक्ति भगवत कृपा का पात्र बनता है।
यदि आप जीवन में आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं, तो वरूथिनी एकादशी का व्रत अवश्य करें — यह एक दिन, आपके पूरे जीवन को बदल सकता है।